कायस्थ हितकारिणी सभा, जयपुर ने 47 साल तक लड़ी कानूनी लड़ाई, तब पुजारी के कब्जे से हासिल की करीब 50 लाख रुपए की सम्पत्ति

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कायस्थ हितकारिणी सभा, जयपुर ने 47 साल तक लड़ी कानूनी लड़ाई, तब पुजारी के कब्जे से हासिल की करीब 50 लाख रुपए की सम्पत्ति

किसी कायस्थ संस्था की यह ऐतिहासिक उपलब्धि है, समाज के अन्य संगठनों-संस्थाओं  के लिए अनुकरणीय है यह उदाहरण

जयपुर (कायस्थ टाइम्स)।

कायस्थ हितकारिणी सभा, जयपुर ने अपने मंदिर की सम्पत्ति को अतिक्रमी पुजारी के परिवार से 47 साल तक केस लड़कर हासिल करने में कामयाबी हासिल कर समाज के सामने एक बड़ा अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। इससे सबक लेकर देशभर में विभिन्न लोगों के द्वारा कब्जाई गई कायस्थ संस्थाओं-संगठनों की सम्पत्तियों को वापस प्राप्त करने के लिए भी सम्बन्धित पक्षों द्वारा आत्मविश्वास से प्रभावी कार्यवाही की जानी चाहिए।

जानकारी के अनुसार कायस्थ हितकारिणी सभा,जयपुर ने लक्ष्मी नारायणपुरी, मंडी खटीकन (दिल्ली बाईपास)  स्थित अन्नपूर्णा माताजी के मंदिर की अपनी अचल सम्पत्ति को मंदिर के पूर्व पुजारी दिवंगत राधेश्याम शर्मा के परिवार से करीब पांच दशक लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद छुड़वाने में सफलता प्राप्त कर ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है।

यह है पूरा मामला

उल्लेखनीय है कि कायस्थ हितकारिणी सभा, जयपुर के स्वामित्व की वर्ष 1964 से वार्ड नम्बर -66, लक्ष्मी नारायणपुरी, जयपुर में 12 हजार वर्ग गज  (करीब 5 बीघा) जमीन है।हितकारिणी सभा से जुड़े हुए गोपी मोहन माथुर के अनुसार समाज के सदाराम मुशर्रफ जी ने तत्कालीन जयपुर महाराजा से वर्ष 1931 में यह जमीन प्राप्त कर इस पर 'अन्नपूर्णा माताजी का मंदिर' बनाया था। इस पर उन्होंने कुआं व बगीची भी बनवा ली थी। इसके बाद वह मंदिर की सेवा-पूजा करने लगे थे। सदाराम मुशर्रफ जी नि:संतान थे। पत्नी का स्वर्गवास हो जाने व अपनी वृद्धावस्था के कारण उन्होंने सारी सम्पत्ति सुभाष चौक जयपुर की चौपाड़ी रामचंद जी कायस्थ सभा को सम्भला दी थी। उनकी बगीची की चारों दिशाओं में खटीक समाज के लोगों के मकान थे। इनके पिछले हिस्से अन्नपूर्णा माता जी मंदिर बगीची की तरफ खुलते थे।

बाद में सुभाष चौक वाली कार्यसमिति ने पूरी सम्पत्ति  'कायस्थ हितकारिणी सभा, जयपुर' को वर्ष 1964 में हस्तांतरित कर दी थी। वहीं, वर्ष 1963 से राधेश्याम पुत्र मोहनलाल विधिवत चयनित पुजारी के रूप में मंदिर में सेवा पूजा कर रहे थे। इसे  देवस्थान विभाग की भी स्वीकृति थी।

पुजारी ने इस तरह किया अतिक्रमण

पुजारी राधेश्याम का कार्यकाल लम्बा रहा। इस दौरान उन्होंने मंदिर की जमीन पर अतिक्रमण कर कमरे बना लिए और अमर्यादित काम करने लगे थे। इस कारण कायस्थ हितकारिणी सभा की प्रबंधकारिणी ने 5/4 /1975 को उन्हें पुजारी पद से बर्खास्त कर दिया था। किंतु उनके द्वारा इस आदेश की अवहेलना करने के कारण कायस्थ हितकारिणी सभा ने जिला एवं सेशन न्यायालय, जयपुर क्रमांक 2 में उनके खिलाफ केस किया। यहां 11 वर्ष बाद सन् 1987 में फैसला हुआ। इसकी अपील पर  हाईकोर्ट ने वर्ष 2006 में निर्णय सुनाया। इसके बाद सेशन कोर्ट में पुनः वाद पर वर्ष 2022 में समझौते से फैसला हुआ। यानी 47 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद कायस्थ हितकारिणी सभा वापस अपनी जमीन पर काबिज हुई।

पुजारी के निधन के बाद बेटा हुआ काबिज

यहां गौरतलब है कि पुजारी राधेश्याम का हाईकोर्ट में जारी न्यायिक प्रक्रिया के दौरान वर्ष 2001 में निधन हो गया था। इसके बाद उनके बड़े पुत्र अमरनाथ शर्मा मंदिर बगीची पर काबिज हो गए। अमरनाथ ने तो इसके बाद मंदिर के पट ही बंद कर वहां कायस्थ समाज के लोगों सहित सभी का प्रवेश रोक दिया था।

ऐसे मिली सफलता की मंजिल

इस परिस्थिति में 11 नवम्बर 2022 को सम्बन्धित न्यायालय क्रमांक 5 एवं न्यायालय एसडीएम जयपुर, प्रथम, जहां अंतरिम निषेधाज्ञा लगी हुई थी,  खारिज कर दोनों वादों को भी समाप्त कर कायस्थ हितकारिणी सभा को बहुत बड़ी राहत दी।  इससे सभा को अतिक्रमी के चंगुल से अनुमानित 50 लाख रुपए की डूबी हुई सम्पत्ति पुनः मिल गई ।

समझौते का यह रहा कारण

 कायस्थ हितकारिणी सभा, जयपुर के अनुसार यदि समझौता नहीं करते तो वाद और अपील के दो अवसर प्रतिवादी पक्ष के पास और थे। ऐसे में यह मामला अभी और भी लम्बा खिंचता।

इनके प्रयासों से मिली सफलता

इस उपलब्धि को हासिल करने के पीछे कायस्थ हितकारिणी सभा के सचिव गोपीमोहन माथुर, उपाध्यक्ष  केएन माथुर, कोषाध्यक्ष अमर नारायण माथुर, नवनिर्वाचित अध्यक्ष देवेन्द्र प्रसाद सक्सेना (मधुकर) व नवनिर्वाचित कार्यकारी अध्यक्ष इंजीनियर लाडली शरण माथुर का उल्लेखनीय प्रयास रहा।